Rajasthan Ke Nritya { राजस्थान के नृत्य }
यहाँ पर राजस्थान के लोक नृत्य / जनजातीय नृत्य का सम्पूर्ण अध्याय उपलब्ध करवाया गया है Rajasthan Lok Nritya
ஃ राजस्थान के क्षेत्रीय लोक नृत्य / Rajasthan ke Kshetriya Lok Nritya
ஃ राजस्थान के विभिन्न जनजातीय नृत्य / Rajasthan ke Janjatiya Nritya
जनजातीय नृत्य
🔅भीलों के नृत्य -
+ गैर नृत्य (फाल्गुन मास + पुरूषों का नृत्य)
मेवाड़ - केसरिया गैर
बाड़मेर - तलवारों की गैर
भीलवाड़ा - घूमर गैर
+ द्विचकी (युगल नृत्य)
+ हाथीमना - भील पुरूष द्वारा विवाह में घुटनों के बल बैठकर किया जाने वाला नृत्य।
+ युद्ध नृत्य - वीर रण कौशल पुरूष प्रधान नृत्य।
+ नैजा नृत्य - भीलों और मीणों का संयुक्त नृत्य। यह एक प्रकार का खेल नृत्य है यह होली पर किया जाता है, जिसमें नारियल को खंभे पर बांधा जाता है, पुरूष इसे उतारने की चेस्टा करते है, महिलाएं कोडों से पीटती है।
+ हुन्दरी - भील और मीणाओं का संयुक्त नृत्य।
+ घूमरा -
+ वैरीहाल
+ गवरी -
🔅कथौड़ी जनजाति
+ नृत्य का क्षेत्र - सराड़ा, कोटड़ा, झाडौल (उदयपुर)।
+ मावलिया - यह नृत्य नवरात्रों में 10-12 पुरूषों द्वारा किया जाता है।
+ होली नृत्य - महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह लगातार 7 दिनों तक चलता है। इसमें पिरामिण्ड बनाए जाते है। प्रयुक्त वाद्य यंत्र - ढोलक, पावरी, बांसूरी।
+ लावणी यह महाराष्ट्र का राज्य नृत्य भी है।
नोट - लावणी गीत - प्रेमी द्वारा प्रमिका का बुलावा भेजने हेतु गाया जाने वाला गीत है।
नोट - फसल पकने पर की जाने वाली कटाई लावणी कहलाती है।
🔅कंजर जनजाति
+ चकरी/फूंदी नृत्य- इस नृत्य में कंजर युवतियां अपने प्रियतम से श्रृंगार की वस्तुएं मंगवाने हेतु चकर काटती हुई नाचती है
प्रमुख कलाकार - शांति, फूलवा व फिल्मा है।
+ धाकड़ नृत्य - कंजर लोगों द्वारा झाला पाव की विजय की खुशी में युद्ध का अभिनय करते हुए किया जाने वाला शौर्यपूर्ण नृत्य।
🔅मीणा जनजाति के नृत्य
+ सुगनी नृत्य - यह नृत्य पाली क्षेत्र में भिगोना तथा गोईया आदिवासी युवक-युवतियों द्वारा श्रावण मास में किया जाता है। जिसमें एक-दूसरे को आकर्षित करने के लिए किया जाता है।
+ रसिया नृत्य - पूर्वी राजस्थान में मीणा स्त्री, पुरूष रसिया गाते हुए यह नृत्य करते है।
🔅गरासिया जनजाति
+ वालर नृत्य - यह गरासियों पुरूषों-स्त्रियों द्वारा अर्द्धवृत्त में किया जाने वाला धीमी गति का मनमोहक नृत्य है। इसमें कोई भी वाद्ययंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता।
+ मोरिया - मोर पक्षी इस जनजाति का आदर्श पक्षी है। यह नृत्य विवाह पर गणपति स्थापना के बाद पुरूषों द्वारा किया जाता है।
+ लूर - यह नृत्य में गरासिया जनजाति में वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष से रिश्ते की मांग करते समय किया जाता है।
+ मांदल - मांगलिक अवसरों पर गरासिया महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य, जिसमें थाली व बांसूरी का प्रयोग होता है।
+ नोट - मांदल अवन्ध श्रेणी का वाद्ययंत्र है, जो कि मोलेला गाँव नाथद्वारा का प्रसिद्ध है। यह शिव और पार्वती का वाद्ययंत्र माना जाता है। इस वाद्ययंत्र का प्रयोग भीलों के गवरी नाटक में भी किया जाता है।
+ रायण नृत्य - मांगलिक पर्व पर पुरूष करते है।
🔅सहरिया जनजाति के नृत्य
+ शिकारी नृत्य -
+ इन्द्रपरी -
+ लहंगी
+ झेला नृत्य -
जातिय नृत्य
+ कालबेलिया नृत्य - इसके नृत्य को 2011 में युनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया।
+ इंडोणी नृत्य - पानी भरते समय किया जाने वाला नृत्य।
+ पणिहारी नृत्य - यह युगल नृत्य है, जिसमें पणिहारी गीत गाए जाते है।
+ शंकरिया - यह कालबेलियों का सर्वाधिक आकर्षक प्रेमाख्यान आधारित पूगल नृत्य है।
+ बागड़िया - यह नृत्य कालबेलियों की महिलाओं द्वारा भीख मांगते समय किया जाता है।
प्रमुख कलाकार - गुलाबो बाई।
+ गुर्जरों के नृत्य -
+ चरी नृत्य - यह गुर्जर महिलाओं द्वारा अतिथि-सत्कार हेतु किया जाता है, जिसके वे सिर पर पीतल का घड़ा रखकर उसके कामड़े व तेल डालकर आग लगाती है। फिर ये स्त्रियां इस चरी को अतिथि के चारों ओर गोल घेरे में कलाइयां घूमाते हुए नाचती है।
प्रमुख कलाकार - फलकू बाई (किशनगढ़)।
+ झूमरा नृत्य - यह नृत्य गुर्जर तथा अहीर/यादवों का संयुक्त नृत्य है।
🔅बणजारा जाति
+ मछली नृत्य - बणजारा युवती द्वारा यह नृतय खुशी/हर्षोल्लास के साथ शुरू होता है, जबकि दुःख के साथ समाप्त।
🔅मेव जाति
+ रणबाजा (पुरूष प्रधान)।
+ रतबई (महिलाओं का नृत्य)।
🔅नट जाति
+ कठपूतली नृत्य - पुरूषों द्वारा किया जाता है।
🔅 माली समाज
+ चरवा नृत्य - स्त्रियों द्वारा किसी के संतान होने पर कांसे के घड़े में दीपक रखकर यह नृत्य किया जाता है।
व्यावसायिक नृत्य
+ भवाई नृत्य - यह नृत्य भवाई जाति द्वारा किया जाता है, जो कि नागोजी जाट केकड़ी (अजमेर) से उत्पन्न मानी जाती है।
+ यह नृत्य मेवाड़ प्रदेश में किया जाता है। + इस नृत्य में साहसिक कारनामे अर्थात् तलवार/कांच पर नृत्य करना, थाली पर नाचना करतब किए जाते है। बेरी, लोडी, ढोकरी, शंकरिया, सूरदास, बीकाजी और ढोलामारू नाच के रूप में प्रसिद्ध है।
+ इस शैली पर आधारित शांति गांधी लिखित जस्मा ओढण प्रसिद्ध नृत्य है।
प्रमुख कलाकार - रूपसिंह शेखावत, अस्मिता काला, श्रेष्ठ सोनी, सांगीलाल सांगठिया, तारा शर्मा आदि।
+ तेरहताली नृत्य - यह नृत्य कामड़ जाति की स्त्रियां रामदेवजी के सम्मान में काटती है।
+ यह राजस्थान का एकमात्र बैठकर किया जाने वाला नृत्य है। + इस नृत्य में केवल कामड़ बहुएं ही भाग लेती है, बेटियां नहीं। + इस नृत्य का जन्म स्थान पादरला गाँव (पाली) है।
नोट - रामेश्वर घाट का भी प्राचीन नाम पादरला था।
+ इस नृत्य में 9 मंजीरे दाएं पैर पर, 2 कोहनी में तथा 2 हाथों में होते है। - प्रमुख कलाकार – मांगीबाई तथा लक्ष्मणदास।
🔅 क्षेत्रीय नृत्य
+ घुड़ला नृत्य - यह नृत्य चैत्र कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। इस नृत्य का जन्म स्थान पिपाड़ा (जोधपुर) है।
यह राव सातल की वीरता से जूड़ा नृत्य है। छिद्रित मटके को घुड़ला कहा जाता है। घुडला नृत्य सर्वप्रथम मारवाड़ में घुड़ले खां की बेटी गिंदोली ने गणगौर उत्सव के समय शुरू किया, जो कि रात्री में किया जाता है।
🔅डांडिया नृत्य
+ यह नृत्य मूलतः गुजरात का है। यह नृत्य होली के बाद शुरू होता है।
🔅झांसी नृत्य
+ यह घुड़ला नृत्य की तरह ही किया जाता है।
🔅शेखावाटी क्षेत्र के नृत्य
+ गीदड़ नृत्य - प्रहलाद स्थापना (डंडा रोपना) से यह नृत्य शुरू होता है। इसमें सिर्फ पुरूष ही भाग लेते है। जो पुरूष-स्त्रियों का स्वांग रचते है, उन्हें गणगौर कहा जाता है।
+ कच्छीघोड़ी नृत्य - कच्छीघोड़ी का अर्थ है - लकड़ी की घोड़ी। इस नृत्य में 8 व्यक्ति भाग लेते है जो कि विविध आकृतियां/पैटर्न बनाते है। यह नृत्य करते समय लसकरिया, बींद, रसाला, रमगारिया गीत गाए जाते है।
+ लहर-लहुर नृत्य - यह नृत्य होली पर भांग का सेवन कर मस्ती के माहौल में किया जाता है, जिसमें अभिनेताओं के संवाद/अभिनय किया जाता है। अन्य - चंग नृत्य, ढफ नृत्य।
+ यह नृत्य पुरूषों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य को पेशेवर नृत्य भी कहा जाता है। इस नृत्य का आगाज 'थाकना शैली' से होता है। नृत्य को प्रकाश में लाने का श्रेय जयनारायण व्यास को जाता है।
🔰अग्नि नृत्य - बीकानेर
+ इस नृत्य का उद्गम कतरियासर (बीकानेर) है। यह नृत्य जसनाथी अनुयायियों द्वारा किया जाता है।
+ अग्नि नृत्य में तीन शब्द जसनाथ जी के व चौथा शब्द नाचणिये का गाया जाता है।
+ 'सिहा कस्म जी' कहकर नृतय का प्रारंभ होता है।
+ इस नृत्य में अंगारों पर चलने से पूर्व फतै-फतै शब्द बोलते है। + इस नृत्य के दौरान मतीरा-फोड़ना तथा हल चलाने की क्रियाएं की जाती है।
+ इस नृत्य में नगाड़ा वाद्य यंत्र का प्रयोग होता है।
+ अग्नि नृत्य को संरक्षण देने का श्रेय महाराजा गंगासिंह को जाता है।
🔰हिंडौला नृत्य - जैसलमेर
🔰कानूड़ा नृत्य - चौहटन ( बाड़मेर)
🔰आंगी-बांगी गैर नृत्य - लाखोटा (बाड़मेर)
🔰लुंबर नृत्य - जालौर
🔰पेजण नृत्य - बागड़ क्षेत्र (डूंगरपुर, बांसवाड़ा)
यह नृत्य दिवाली पर किया जाता है, पुरूष स्त्री की वेशभूषा धारण करते है।
🔰पोलीनोच नृत्य - बांसवाड़ा
🔰मोहिली - प्रतापगढ
🔰नाहर नृत्य - माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा)
यह नृत्य होली के 13 दिन बाद किया जाता है।
बिन्दौली नृत्य - झालावाड़
वर-वधू की पोशाक भी बिन्दौली कहलाती है।
🔰ढोला मारू नृत्य - झालावाड़
🔰शिकारी नृत्य - बारां
🔰लांगुरिया नृत्य - करौली
🔰बम नृत्य - भरतपुर
इस नृत्य में नगाड़ा वाद्य यंत्र का प्रयोग होता है।
🔰चरकूला - पूर्वी भरतपुर
🔰हूंरगो नृत्य - भरतपुर
🔰खारी नृत्य - अलवर
दुल्हन की विदाई के समय उसकी सरिवयों द्वारा यह नृत्य किया जाता है।
🔰कबूतरी नृत्य - चूरू
🔰डांग नृत्य - नाथद्वारा (राजसमंद)
यह एक धार्मिक नृत्य है।
🔰मयूर नृत्य - ब्यावर (अजमेर)
🔰डिग्गीपुर का राजा नृत्य - डिग्गीपुरी (टोंक)
🔰सुकर नृत्य - अलवर
नोट - सुकर प्रजनन केन्द्र - अलवर।
🔰चाक-चाणी नृत्य - बीकानेर
🔰टुटिया नृत्य
बारात की रवानगी पश्चात् पीछे से महिलाएं हास-परिहास के रूप में नृत्य करती है।
🔰घूमर नृत्य
यह राजस्थान का राज्य नृत्य है। इसे राजस्थान की आत्मा भी कहा जाता है।
🔰शास्त्रीय नृत्य
ऐसे नृत्य जो व्याकरणीय नियमों पर आधारित हो।
राजस्थान का शास्त्रीय नृत्य कत्थक है।
प्रमुख केन्द्र - जयपुर।
प्रवर्तक - श्री भानूजी महाराज।
अंतर्राष्ट्रीय कलाकार - श्री बिरजू महाराज।
अन्य कलाकार - प्रेरणा श्रीमाली तथा उदयशंकर।
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